चंबल सेंचुरी में बढ़ी पहरेदारी:दिवाली पर अंधविश्वास में लोग देते हैं उल्लू की बलि, लालच में मर रहे बेजुबान – Vigilance Increased To Protect Owls From Being Sacrificed On Diwali In Chambal Sanctuary Agra

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Vigilance increased to protect owls from being sacrificed on Diwali in Chambal Sanctuary Agra

उल्लू
– फोटो : अमर उजाला

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चंबल सेंचुरी की बाह रेंज में उल्लू की दो प्रजातियां मुआ और घुग्घू पाई जाती हैं। नदी किनारे के टीलों की खुखाल, खंडहर और पेड़ों पर इनका दिखना आम बात है। रेंजर उदय प्रताप सिंह ने बताया कि उल्लू का वैज्ञानिक नाम स्ट्रिगिफोर्मिस है। अंधविश्वास के चलते दिवाली पर उल्लू की बलि दी जाती है, इस वजह से रेंज में इनकी पहरेदारी बढ़ा दी गई है। तंत्र-मंत्र के लिए उल्लू तस्करी की आशंका पर वन विभाग ने तटवर्तीय ग्रामीणों को जागरूक किया है। साथ ही मारने और पकड़ने वाले लोग दिखने पर सूचना देने के लिए भी कहा है।

पौराणिक कहानियों में उल्लू बुद्धिमान

पौराणिक कहानियों में उल्लू को बुद्धिमान माना गया है। प्राचीन यूनानियों में बुद्धि की देवी, एथेन के बारे में कहा जाता है कि वह उल्लू का रूप धारण कर पृथ्वी पर आईं थी। हिंदू संस्कृति में माना जाता है कि उल्लू समृद्धि और धन लाता है। धन की देवी लक्ष्मी का वाहन है। लोगों का मानना है कि दीपावली की रात उल्लू की बलि देने से अगले साल तक के लिए धन-धान्य सुख संपदा बनी रहती है। 

नहीं होती पलकें

उल्लू अपने सिर को दोनों तरफ 135 डिग्री तक घुमा सकता है। पलकें नहीं होने के कारण इनकी आंखें हरदम खुली रहती हैं। उल्लू के पंख चौड़े और शरीर हल्का होने की वजह से उड़ान के समय आवाज नहीं होती। उल्लू संरक्षित श्रेणी का पक्षी है। उल्लू के शिकार या तस्करी पर कम से कम तीन वर्ष की सजा का प्रावधान है।

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